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Saturday, 27 June 2015

Ibadat me dil na lagta ho to.

"YAA ALLAHU - YAA GHAFFARU - YAA QADIRU" 
Jo shakhs 121 bar in kalmat ko pare awal o akhir 11 bar durood shareef k saath to us ka ibadat mei dil lag jayega.


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Sunday, 7 June 2015

रमजान की नफिल इबादतें

रमजान इबादत का महीना है. इस मुबारक महीने में अल्लाह के बन्दे अपने रब का इनाम पाने के लिए नफिल इबादत करते है. ११ महीने मस्जिद से दूर रहने वाले, बड़े से बड़ा गुनाहगार भी अल्लाह की रहमत पर यकीन रखता होवा अल्लाह के घर में अपने सजदों के नज़राने पेश करता है, यही वज़ह है की हमारी छोटी बड़ी सभी मस्जिदे आबाद हो जाती हैं और बड़े ही शौख से लोग तरावीह में सहरिक होते है मस्जिद में खश तरावीह में शरीक खोते है, मस्जिदो में खश तौर पर क़ुरान शरीफ सुनने और सुनाने का आयेहतमं किया जाता है,
इन सारी बातोके अलावा अल्लाह के कुछ नेक बन्दे और भी नफिल इबादतें कर के अपने रब की रहमते, बरकते हासिल करने की कोशिश करते है.
अगर अल्लाह तौफीक दे तो हम भी हर रात २ रकत नफिल पड़ने की कोशिश करे. रमजान की नफिल इबादतें
हर रकअत में सूरे फतेह के बाद ३ बार कुल्हुवल्लाह सहरीफ़ पढ़े. इसकी बरकत से अल्लाह के फ़रिश्ते पड़ने वाले की नेकियों की हिफाज़त फरमाएंगे, गुनाहो से बचाते रहेंगे और अल्लाह पाक जन्नत में उसका मर्तबा बुलंद फरमाएगा.
हदीस शरीफ और बुज़ुर्गु के मालूमात में और बहुत सी नमाज़ है जो हम जैसे लोग के लिए बहुत भरी है हाँ, ये २ रकते तो पढ़ी जा सकते है. अल्लाह पाक हमें तौफीक दे. अमीन!!
सबे क़दर मगफिरत की रात है, इसलिए अपने और अपने वालिदैन के लिए ज़रूर दुआए मगफिरत करे.
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Khidmate Khalq Ki Ahmiyat

Khidmate Khalq Ki Ahmiyat.

इस्लाम में खिदमते खलक की बड़ी अहमियत है. इससे भी इबादत करार किया गया है इस्लाम पूरी इंसानी समाज को एक खानदान मानता है इसलिए तो अल्लाह के रसूल ने फ़रमाया – सारी मख्लूक़ अल्लाह का क़ुबा है. अल्लाह को सब से जाएदा वह आदिमी पसंद है जो उसकी मख्लूक़ के साथ अच्छा बर्ताव, करता है.| अल्लाह एक है, उसका कोई शरीक व साझी दार नहीं वो अकेला सारी क़ायनात का खालिक व मालिक व पलने वाला है. उसे अपने मख्लूक़ से प्यार है. वही सबको रोजी देता है सबकी जरुरत पूरी फ़रमाता है. इसी गहरे रिश्ते की वजह से अल्लाह के रसूल ने मख्लूक़ को अल्लाह का क़ुबा कहा है.

Allah ke makhlooq se nek saluk karne ka matlab.

अल्लाह के मख्लूक़ से नेक सलूक करने का मतलब ये है की उस पर रहेम किया जाये खिदमत की जाये और उस पर जुल्म न किया जाये, उसे सताया न जाये, उसे तकलीफ न पहुचाइए जाये. आदमी के लिए जरुरी है की वह आएसा काम करे जिससे समाज का मौहोल खुशगवार रहे, अमन व सुकून बहाल रहे और हर छोटा व बड़ा इज़्ज़त वा सुकून की ज़िन्दगी गुज़ारे. अपनी सलिहत व ताकत के मुताबिक लोगो के काम आये, बेसहारो का सहारा बने, जरुरत मन्दो की मदद करे, लोगो के उलझे मसाएल को सुलझाये. अल्लाह को वह लोग बहुत प्यारे लगते है जो उस के बन्दों की खिदमत करते है. किसी से कोई आस नहीं रखते बल्कि अल्लाह की रजा के लिए लोगो के काम आते हैं और यकीन रखते है की अल्लाह पाक उनकी नेक कोशिश का नेक बदला जरूर अत फरमाएगा. अपनी किसी जाती फायदे या ग़रज़ से किसी की मदद नहीं करते बल्कि अल्लाह के बन्दों की खिदमत को इंसानी फ़र्ज़ समझते हुए अपनी हैशियत के मुताबिक लोगो की खिदमत करते है.

Allah ke rasool farmate hai.

अल्लाह के रसूल फरमाते है – जो आदिमी किसी को खुश करने के लिए उसकी मदद करता है, जरुरत पूरी करता है तो हकीकत में मुझे खुश करता है, और जो मुझे खुश करता है व अल्लाह को खुश करता है और अल्लाह को खुश करने वाला जन्नत का हकदार होता है. यही वजह है की हमारे प्यारे रसूल लोगो पर बड़े मेहरबान थे, किसी को डाटते-फटकारते न थे, इसलिए हर छोटा बड़ा आपकी इनायतो का हकदार बन जाता था.
बस्ती व महोल्ले वालो की भी अख़लाक़ी जिम्मेदारी है की वह अपने इलाके में अपनी हैसियत के मुताबिक मानव सेवा में लगे रहे ताकि अल्लाह के बन्दों को उनक फैज़ मिलता रहे.